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Friday 2 January 2015

जानिए नंदी के इन रहस्यों को

नंदी के इन रहस्यों में छिपा है गहरा संदेश
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जब मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने जाएं तो नंदी को भी प्रणाम करें। उनके सींगों को स्पर्श कर मस्तक से लगाएं। और आते वक्त अपनी मनोकामना उनके कान में कहें। भगवान शिव उसे शीघ्र पूरी करेंगे।
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भगवान शिव के वाहन नंदी से जुड़े कई रहस्य हैं और उनके आध्यात्मिक कारण भी हैं। अक्सर हम देखते हैं कि नंदी की प्रतिमा शिव-परिवार से कुछ दूरी पर या मंदिर के बाहर होती है। 
इसका कारण क्या है? वास्तव में जिस प्रकार भगवान शिव के दर्शन और पूजन का महत्व है, उसी प्रकार नंदी के दर्शन करने से भी पुण्य प्राप्त है। 
नंदी भगवान शिव के वाहन ही नहीं, वे उनके परम भक्त भी हैं। उनके दर्शन मात्र से मन को असीम शांति प्राप्त होती है। 
कहा जाता है कि शिव गहन समाधि में डूबे रहते हैं, क्योंकि वे महान तपस्वी भी हैं। अगर अपनी मनोकामना नंदी से कही जाए तो वे भगवान तक उसे जरूर पहुंचाते हैं। 
फिर वह नंदी की प्रार्थना हो जाती है जिसे भगवान शिव जरूर पूरी करते हैं। नंदी मंदिर के बाहर विराजमान होते हैं, जहां भक्त आसानी से उन तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं।
नंदी के नेत्र बहुत सुंदर हैं। उन्हें देखने से मन को सुकून मिलता है। नंदी के नेत्र सदैव अपने इष्ट को स्मरण रखने का प्रतीक हैं, क्योंकि नेत्रों से ही उनकी छवि मन में बसती है और यहीं से भक्ति की शुरूआत होती है। 
लेकिन वे भक्ति के साथ ही नीति को भी जरूरी मानते हैं, क्योंकि अगर भक्ति के साथ मनुष्य में क्रोध, अहम व दुर्गुणों को पराजित करने का सामर्थ्य न हो तो भक्ति का लक्ष्य प्राप्त नहीं होता। नंदी के नेत्रों से हम ये बातें सीख सकते हैं।
नंदी के दो सींग हैं जो नेत्रों की तरह ही बहुत सुंदर हैं। वे न तो बहुत बड़े हैं और न बहुत छोटे। सींगों का संबंध मस्तिष्क से है। 
नंदी के दर्शन करने के बाद उनके सींगों को स्पर्श कर माथे से लगाने का विधान है। कहा जाता है कि इससे मनुष्य को सद्बुद्धि आती है, विवेक जाग्रत होता है। लंबी उम्र होती है तथा शुभ-अशुभ कर्मो में भेद करने और शुभ संकल्प का भाव पैदा होता है।
नंदी के सींग दो और बातों के भी प्रतीक हैं। वे जीवन में ज्ञान और विवेक को अपनाने का संदेश देते हैं। 
जीवन में भक्ति जरूरी है लेकिन भक्ति के साथ विवेक भी होना चाहिए। विवेक ही मनुष्य को भक्ति के माध्यम से भगवान तक पहुंचाता है। 
अविवेकी मनुष्य कई प्रकार के अनर्थों को आमंत्रण देता है। इसलिए भक्ति के साथ विवेक जरूर होना चाहिए। और इन सब बातों की जानकारी ही ज्ञान है।
नंदी मंदिर से बाहर या शिव-परिवार से कुछ दूरी पर विराजते हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे अपने परमात्मा से दूर हैं। 
वे कुछ दूर रहकर भी उनके बहुत समीप हैं। उनकी दृष्टि सदा शिव की ओर रहती है। वे एक क्षण भी अपनी दृष्टि को शिव से अलग नहीं करते। 
इसका मतलब है कि अगर ईश्वर से प्रेम करो तो एक क्षण के लिए भी उसे भूलो नहीं। यही कारण है कि जितने नंदी शिव के नजदीक हैं, उनके करीबी हैं, उससे कहीं ज्यादा शिव अपने नंदी के करीबी हैं। 
जो भक्त सदा ईश्वर का स्मरण करता है, उससे ज्यादा ईश्वर उसे स्मरण रखते हैं। 
नंदी के गले में एक सुनहरी घंटी होती है। जब इसकी आवाज आती है तो यह मन को मधुर लगती है। जब शिव नंदी पर सवार होकर यात्रा करते हैं तो यह बजती रहती है। 
यह एक ईश्वरीय धुन है जो नंदी को पि्रय है। इसी धुन में वे निरंतर अपने इष्ट के ध्यान में डूबे रहते हैं। 
घंटी की मधुर धुन का मतलब है कि नंदी की तरह ही अगर मनुष्य भी अपने भगवान की धुन में रमा रहे तो यह जीवन-यात्रा बहुत आसान हो जाती है। उसका हर कार्य अपने प्रभु को ही समर्पित हो जाता है।
नंदी के चार चरण हैं जिनके बल पर वे शिव की यात्रा को सफल बनाते हैं। इसमें बहुत गूढ़ अर्थ छिपा है। 
मनुष्य के जीवन की भी चार ही अवस्थाएं होती हैं। इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति अपने कार्य को भगवान का कार्य मानकर चलता है तो उसका हर क्षण भगवान को ही समर्पित हो जाता है। 
उसके जीवन की चारों अवस्थाएं सकुशल संपन्न होती हैं और इसके बाद वह भगवान को ही प्राप्त करता है।
नंदी पवित्रता, विवेक, बुद्धि और ज्ञान के प्रतीक हैं। उनका हर क्षण शिव को ही समर्पित है और मनुष्य को यही शिक्षा देते हैं कि वह भी अपना हर क्षण परमात्मा को अर्पित करता चले तो उसका ध्यान भगवान रखेंगे।
1/2/2015 राजस्थान पत्रिका के अनुसार<< सूर्य की किरण >>