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Thursday 9 October 2014

रावण ने बताई थीं स्त्री स्वभाव में ये आठ खामियां..

दशहरा यानी विजयादशमी को देशभर में बुराई के प्रतीक रावण का दहन हुआ। शास्त्रों के अनुसार रावण की कई पत्नियां थीं और वह हमेशा ही सुंदर स्त्रियों से मोहित हो जाता था। सीता भी बहुत सुंदर थीं और इसी कारण रावण ने सीता का हरण किया था। श्रीरामचरित मानस के अनुसार रावण ने मंदोदरी को स्त्रियों के संबंध में कुछ बातें बताई थीं, जानिए वह बातें कौन-कौन थीं...
क्या है प्रसंग
श्रीरामचरित मानस के अनुसार जब श्रीराम वानर सेना सहित लंका पर आक्रमण के लिए समुद्र पार कर लंका पहुंच गए थे, तब रानी मंदोदरी को कई अपशकुन होते दिखाई दिए। इन अपशकुनों से मंदोदरी डर गई और वह रावण को समझाने लगी कि युद्ध ना करें और श्रीराम से क्षमा याचना करते हुए सीता को उन्हें सौंप दें। इस बात पर रावण ने मंदोदरी का मजाक बनाते हुए कहा कि-
नारि सुभाऊ सत्य सब कहहीं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं।
साहस अनृत चपलता माया। भय अबिबेक असौच अदाया।
इस दोहे में रावण ने मंदोदरी से कहा है कि नारी के स्वभाव के विषय सभी सत्य ही कहते हैं कि अधिकांश स्त्रियों में आठ बुराइयां हमेशा रहती हैं।

रावण ने मंदोदरी को स्त्रियों की जो आठ बुराइयां बताई उसमें पहली है साहस...
रावण के अनुसार स्त्रियों में अधिक साहस होता है, जो कि कभी-कभी आवश्यकता से अधिक भी हो जाता है। इसी कारण स्त्रियां कई बार ऐसे काम कर देती हैं, जिससे बाद में उन्हें और उनके परिवार के सदस्यों को पछताना पड़ता है। रावण मंदोदरी से कहता है कि स्त्रियां यह समझ नहीं पाती हैं कि साहस का कब और कैसे सही उपयोग किया जाना चाहिए। जब साहस हद से अधिक होता है तो वह दु:साहस बन जाता है और यह हमेशा ही नुकसानदायक है।
दूसरी बुराई है माया यानी छल करना-
रावण के अनुसार स्त्रियां अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए कई प्रकार की माया रचती हैं। किसी अन्य व्यक्ति से अपने काम निकलवाने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देती हैं, रूठती हैं, मनाती हैं। यह सब माया है। यदि कोई पुरुष इस माया में फंस जाता है तो वह स्त्री के वश में हो जाता है। रावण मंदोदरी से कहता है कि तूने माया रचकर मेरे शत्रु राम का भय सुनाया है, ताकि मैं तेरी बातों में आ जाऊं।

तीसरी बुराई है चंचलता-
स्त्रियों का मन पुरुषों की तुलना में अधिक चंचल होता है। इसी वजह से वे किसी एक बात पर लंबे समय तक अडिग नहीं रह पाती हैं। पल-पल में स्त्रियों के विचार बदलते हैं और इसी वजह से वे अधिकांश परिस्थितियों में सही निर्णय नहीं ले पाती हैं।
चौथी बुराई है झूठ बोलना-
रावण के अनुसार स्त्रियां बात-बात पर झूठ बोलती हैं। इस आदत के कारण अक्सर इन्हें परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। कभी भी झूठ अधिक समय तक छिप नहीं सकता है, सच एक दिन सामने आ ही जाता है।

पांचवीं बुराई है भय यानी डरपोक होना
कभी-कभी स्त्रियां अनावश्यक रूप से भयभीत हो जाती हैं और इस वजह से उनके द्वारा कई काम बिगड़ जाते हैं। बाहरी तौर पर साहस दिखाती हैं, लेकिन इनके मन में भय होता है।
छठीं बुराई है अववेकी यानी मूर्खता
रावण कहता है कि कुछ परिस्थितियां में स्त्रियां मूर्खता पूर्ण कार्य कर देती हैं। अधिक साहस होने की वजह से और स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए ऐसे काम कर दिए जाते हैं जो कि भविष्य में मूर्खता पूर्ण सिद्ध होते हैं। यदि कोई स्त्री मूर्खता पूर्ण काम करती है तो उसके पूरे परिवार को इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।
रावण के अनुसार सातवीं बुराई है निर्दयता यानी स्त्रियां यदि निर्दयी हो जाए तो वह कभी भी दया नहीं दिखाती है।
आठवीं बुराई है अपवित्रता यानी साफ-सफाई का अभाव।

स्त्रियों की ये आठ बुराइयां बताने के बाद रावण मंदोदरी से कहता है कि-
रिपु कर रूप सकल तैं गावा। अति बिसाल भय मोहि सुनावा।।
रावण ने मंदोदरी से कहा कि तूने मेरे सामने परम शत्रु राम का गुणगान किया है, मुझे उसका डर दिखाया है।
सो सब प्रिया सहज बस मोरें। समुझि परा प्रसाद अब तोरें।।
जानिउं प्रिया तोरि चतुराई। एहि बिधि कहहु मोरि प्रभुताई।।
इस दोहे में रावण कहता है कि हे प्रिये। यह पूरा विश्व, प्रकृति सबकुछ मेरे वश में है, इस वजह से कोई मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकता है। रावण को मंदोदरी की बातें सुनकर यह भ्रम हो गया था कि मंदोदरी उसकी तारीफ कर रही है।

तव बतकही गूढ़ मृगलोचनि। समुझत सुखद सुनत भय मोचनि।।
इसके बाद रावण कहता है कि हे मंदोदरी, तूने राम का गुणगान करके भी मेरे ही पराक्रम को महान बताया है। तेरी ये सभी मेरे भय को दूर करने वाली है।
मंदोदरि मन महुं अस ठयऊ। पियहिं काल बस मति भ्रम भयऊ।।
यह सुनकर मंदोदरी समझ गई कि उसके पति अब काल के वश हो गए हैं और इसकारण उन्हें मतिभ्रम हो रहा है।




Wednesday 8 October 2014

जानिए शिवजी की अनोखी बातें

शिव को आदि और अनंत माना गया है। कहा जाता है कि शिव निर्विकार हैं। वे भोलेनाथ हैं। इसलिए अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न होते हैं। वे एक मात्र देवता हैं, जिनकी आराधना कांटों भरे फलों से की जाती है। अन्य देवता स्वर्ग में रहते हैं जबकि शिव श्मशान में रहते हैं। शिव का स्वरूप अद्भुत है, आइए जानते है शिव के स्वरूप में समाए सुख व सफल जीवन के रहस्य...
शिव के हाथ में त्रिशूल क्यों?


शिव स्वरूप में त्रिशूल अहम अंग है। त्रिशूल का शाब्दिक अर्थ है 'त्रि' यानी तीन और 'शूल' यानी कांटा। त्रिशूल धारण करने से ही भगवान शिव, शूलपाणि यानी त्रिशूल धारण करने वाले देवता के रूप में भी वंदनीय है। इसके पीछे धार्मिक दर्शन है कि त्रिशूल घातक और अचूक हथियार तो है, किंतु सांसारिक नजरिए से यह कल्याणकारी है। त्रिशूल के तीन कांटे जगत में फैले रज, तम और सत्व गुणों का प्रतीक हैं। दरअसल, इन तीन गुणों में दोष होने पर ही कर्म, विचार और स्वभाव भी विकृत होते हैं। जो सभी दैहिक, भौतिक और मानसिक पीड़ाओं का कारण बन शूल यानी कांटे की तरह चुभकर असफल जीवन का कारण बनते हैं। 


शिव के हाथों में त्रिशूल संकेत है कि महादेव इन तीन गुणों पर नियंत्रण करते हैं। शिव त्रिशूल धारण कर यही संदेश देते हैं कि इन तीन गुणों में संतुलन और समायोजन के द्वारा ही व्यक्तिगत जीवन के साथ सांसारिक जीवन में भी सुखी और समृद्ध बन सकता है।
शिव गले में क्यों पहनते हैं नागों का हार?


भगवान शिव के विराट स्वरूप की महिमा बताते शिव पञ्चाक्षरी स्त्रोत की शुरुआत में शिव को ‘नागेन्द्रहाराय’ कहकर स्तुति की गई है। जिसका सरल शब्दों में मतलब है ऐसे देवता जिनके गले में सर्प का हार है। यह शब्द शिव के दिव्य और विलक्षण चरित्र को उजागर ही नहीं करता, बल्कि जीवन से जुड़ा एक सूत्र भी सिखाता है। जानिए यह सूत्र-



शास्त्रों के मुताबिक शिव नागों के अधिपति है। दरअसल, नाग या सर्प कालरूप माना गया है। क्योंकि वह विषैला व तामसी स्वभाव का जीव है। नागों का शिव के अधीन होना यही संकेत है कि शिव तमोगुण, दोष, विकारों के नियंत्रक व संहारक हैं, जो कलह का कारण ही नहीं, बल्कि जीवन के लिये घातक भी होते हैं। इसलिए वह प्रतीक रूप में कालों के काल भी पुकारे जाते हैं और शिव भक्ति ऐसे ही दोषों का शमन करती है।
इस तरह शिव का नागों का हार पहनना व्यावहारिक जीवन के लिये भी यही संदेश देता है कि जीवन को तबाह करने वाले कलह और कड़वाहट रूपी घातक जहर से बचाना है तो मन, वचन व कर्म से द्वेष, क्रोध, काम, लोभ, मोह, मद जैसे तमोगुण व बुरी आदत रूपी नागों पर काबू रखें। सरल शब्दों में कहें तो साफ, स्वच्छ और संयम भरी जीवनशैली से जीवन को शिव की तरह निर्भय, निश्चिंत व सुखी बनाएं।


क्यों शिव धारण करते हैं चंद्रमा और वाघम्बर?


शिव चरित्र के इन प्रतीकों में भी जीवन से जुड़े उपयोगी संदेश हैं- 



चंद्रमा- भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा विराजित है। इस चंद्रमा की चमक व उजलापन उजागर करता है शिव का चरित्र व मन भी साफ, भोला यानी निस्वार्थ, विवेकी और पवित्र है। हर भक्त को भी शिव से इसी भद्रता का सबक लेना चाहिए।
बाघम्बर -   शिव बाघ की खाल पर बैठते और धारण भी करते हैं। कहीं वह हाथी की खाल भी धारण करने वाले बताए गए हैं। इनमें संदेश यही है कि शिव की तरह हिंसा भाव व हाथी की तरह शक्ति संपन्न होने पर भी अहंकार पर विजय पाएं। 


क्या है शिव के वाहन नंदी और त्रिनेत्र से जुड़ा संदेश?


नंदी या वृषभ वाहन- पुरुषार्थ यानी धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष का प्रतीक है, जो शिव कृपा से ही साधे जाने का प्रतीक है। 
त्रिनेत्र- भगवान शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक है, जिसका खुलना अज्ञान व अविवेक का नाश करने वाला माना जाता है। शिव भक्ति के जरिए यही ज्ञान भक्त की जीवन की राह आसान बनाता है। 
क्या है डमरू  और मुण्डमाला से जुड़ी गूढ़ बात


डमरू- डमरू का नाद यानी आवाज परब्रह्म स्वरूप माना गया है। शिव का तांडव नृत्य के दौरान इसके जरिए प्रकट ब्रह्म शक्ति जगत के सारे क्लेश व अज्ञानता का नाश करने वाली मानी गई है। इसलिए भी शिव पूजा में डमरू बजाने का महत्व है। 



मुण्डमाला- शिव के गले में नरमुण्डों की माला मृत्यु या काल का उनके वश में होने का प्रतीक है। 

हर हर महादेव 


दैनिक भास्कर Oct 07, 2014


Friday 3 October 2014

जानिए अष्टांग योग के नियम

      

ध्यान से समाधि को प्राप्त करने के लिए योग के आठ अंगों से गुजरना जरुरी होता है। योग के आठ चरण अष्टांग योग कहलाते हैं। योग के आदिगुरु आचार्य पतंजलि ने स्पष्ट किया है कि बिना शरीर और मन की सफाई के समाधि की स्थिति तक पहुंचना संभव नहीं है। अगर ध्यान में गहरे उतरना चाहते हैं तो योग के इन आठ अंगों का पूरा पालन करना होगा। योग दर्शन में लिखा गया है -
    
यमनियमासनप्राणायमप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावंगानि।

अर्थात् यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि ये योग के आठ अंग हैं।

क्यों जरूरी है यम और नियम का पालन करना...

कई लोग समाधि लगाने की कोशिश करते हैं, लेकिन सफलता नहीं मिलती क्योंकि वे यम और नियम का पालन नहीं करते हैं। यम और नियम पालन करने से व्यक्ति झूठ बोलने, जोर जबरदस्ती करने, चोरी करने, कपट करने से दूर रहता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह को वश में कर लेने से उसका मन एकदम साफ व पवित्र बना रहता है। यम और नियम का पालन करे बिना ध्यान और समाधि तो दूर रही वह प्राणायाम तक ठीक से नहीं किया जा सकता है।

1- यम-  योगदर्शन के अनुसार 1- अहिंसा, 2- सत्य, 3- अस्तेय, 4- ब्रह्मचर्य, 5- अपरिग्रह इन पांचों का नाम यम है। यम का दूसरा नाम महाव्रत है।

अहिंसा- किसी दूसरे प्राणी को किसी भी प्रकार से शारीरिक नुकसान न पहुंचाना हिंसा है।

सत्य- मन में जैसा सोचा गया हो, किसी की हित की भावना में बिना चुभने वाले वाक्यों में वैसा ही कहना सत्य है।

अस्तेय- चोरी न करना।

ब्रह्मचर्य- विषय वासना से दूर रहना।

अपरिग्रह- शब्दों से, रूप से, रस से, गंध से, स्पर्श से प्रभावित न होना अपरिग्रह कहलाता है। अपरिग्रह मतलब जिसको ग्रहण न किया जाए।

2- नियम- 1- पवित्रता, 2- संतोष, 3- तप, 4- स्वाध्याय, 5- ईश्वर भक्ति ये पांचों नियम हैं।

पवित्रता- पवित्रता दो प्रकार की होती है।

बाहरी पवित्रता - शरीर की जल से शुद्धि बाहरी पवित्रता है।

आंतरिक पवित्रता- मन के दुर्गुणों को मिटा देना आंतरिक पवित्रता है।

संतोष-   सुख-दुख हर परिस्थिति में प्रसन्न बने रहने का नाम संतोष है।

स्वाध्याय- ग्रंथों का अध्ययन, अपनी पढ़ाई में लगे रहना का नाम स्वाध्याय है।

ईश्वर भक्ति- मन, वचन, कर्म से ईश्वर को मानना ईश्वर भक्ति है।
जानिए, योग के होते हैं आठ अंग, ध्यान और समाधि आते हैं सबसे आखिरी में

3- आसन- आसन मतलब बैठना। योग में आसन का अर्थ होगा सुखपूर्वक एक ही स्थिति में स्वयं को बनाए रखने वाली मुद्रा में बैठना।
आसन कई प्रकार के होते हैं। उनमें से सिद्धासन, पद्मासन प्रमुख आसन हैं, जिसमें बैठकर योग करना चाहिए।

4- प्राणायाम- प्राणायाम की क्रिया में सांसों को रोककर रखा जाता है, जिससे कि मन को स्थिर रखने की शक्ति प्राप्त होती है।

योगदर्शन में कहा गया है - ततः क्षीयते प्रकाशावरणम।

अर्थात प्राणायाम के सिद्ध हो जाने पर बुद्धि को ढकने वाले पाप का नाश हो जाता है।

5- प्रत्याहार- प्रत्याहार में इंद्रियां वश में हो जाती हैं। मन के वश में होते ही इंद्रियों पर कंट्रोल अपने आप बनने लगता है। मन का वश में रहना ही प्रत्याहार है।

6-  धारणा - मन के स्थिर हो जाने पर उसे किसी एक विषय पर स्थिर कर देना ही धारणा है। याने स्थूल या सूक्ष्म , भीतरी या बाहरी, किसी एक ही जगह मन को लगाना।

7-  ध्यान- धारणा में लगे हुए उस एक ही वस्तु में लगातार लगे रहना ही ध्यान है।

8-  समाधि- ध्यान ही समाधि हो जाता है, जब उस धारणा में लगाई हुई वस्तु की ओर ही मन रह जाता है व अपने धरती पर होने का अहसास ही नही रहता है।

Dainikbhaskar.com Oct 3, 2014, 04:17:00 PM IST