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Wednesday 8 October 2014

जानिए शिवजी की अनोखी बातें

शिव को आदि और अनंत माना गया है। कहा जाता है कि शिव निर्विकार हैं। वे भोलेनाथ हैं। इसलिए अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न होते हैं। वे एक मात्र देवता हैं, जिनकी आराधना कांटों भरे फलों से की जाती है। अन्य देवता स्वर्ग में रहते हैं जबकि शिव श्मशान में रहते हैं। शिव का स्वरूप अद्भुत है, आइए जानते है शिव के स्वरूप में समाए सुख व सफल जीवन के रहस्य...
शिव के हाथ में त्रिशूल क्यों?


शिव स्वरूप में त्रिशूल अहम अंग है। त्रिशूल का शाब्दिक अर्थ है 'त्रि' यानी तीन और 'शूल' यानी कांटा। त्रिशूल धारण करने से ही भगवान शिव, शूलपाणि यानी त्रिशूल धारण करने वाले देवता के रूप में भी वंदनीय है। इसके पीछे धार्मिक दर्शन है कि त्रिशूल घातक और अचूक हथियार तो है, किंतु सांसारिक नजरिए से यह कल्याणकारी है। त्रिशूल के तीन कांटे जगत में फैले रज, तम और सत्व गुणों का प्रतीक हैं। दरअसल, इन तीन गुणों में दोष होने पर ही कर्म, विचार और स्वभाव भी विकृत होते हैं। जो सभी दैहिक, भौतिक और मानसिक पीड़ाओं का कारण बन शूल यानी कांटे की तरह चुभकर असफल जीवन का कारण बनते हैं। 


शिव के हाथों में त्रिशूल संकेत है कि महादेव इन तीन गुणों पर नियंत्रण करते हैं। शिव त्रिशूल धारण कर यही संदेश देते हैं कि इन तीन गुणों में संतुलन और समायोजन के द्वारा ही व्यक्तिगत जीवन के साथ सांसारिक जीवन में भी सुखी और समृद्ध बन सकता है।
शिव गले में क्यों पहनते हैं नागों का हार?


भगवान शिव के विराट स्वरूप की महिमा बताते शिव पञ्चाक्षरी स्त्रोत की शुरुआत में शिव को ‘नागेन्द्रहाराय’ कहकर स्तुति की गई है। जिसका सरल शब्दों में मतलब है ऐसे देवता जिनके गले में सर्प का हार है। यह शब्द शिव के दिव्य और विलक्षण चरित्र को उजागर ही नहीं करता, बल्कि जीवन से जुड़ा एक सूत्र भी सिखाता है। जानिए यह सूत्र-



शास्त्रों के मुताबिक शिव नागों के अधिपति है। दरअसल, नाग या सर्प कालरूप माना गया है। क्योंकि वह विषैला व तामसी स्वभाव का जीव है। नागों का शिव के अधीन होना यही संकेत है कि शिव तमोगुण, दोष, विकारों के नियंत्रक व संहारक हैं, जो कलह का कारण ही नहीं, बल्कि जीवन के लिये घातक भी होते हैं। इसलिए वह प्रतीक रूप में कालों के काल भी पुकारे जाते हैं और शिव भक्ति ऐसे ही दोषों का शमन करती है।
इस तरह शिव का नागों का हार पहनना व्यावहारिक जीवन के लिये भी यही संदेश देता है कि जीवन को तबाह करने वाले कलह और कड़वाहट रूपी घातक जहर से बचाना है तो मन, वचन व कर्म से द्वेष, क्रोध, काम, लोभ, मोह, मद जैसे तमोगुण व बुरी आदत रूपी नागों पर काबू रखें। सरल शब्दों में कहें तो साफ, स्वच्छ और संयम भरी जीवनशैली से जीवन को शिव की तरह निर्भय, निश्चिंत व सुखी बनाएं।


क्यों शिव धारण करते हैं चंद्रमा और वाघम्बर?


शिव चरित्र के इन प्रतीकों में भी जीवन से जुड़े उपयोगी संदेश हैं- 



चंद्रमा- भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा विराजित है। इस चंद्रमा की चमक व उजलापन उजागर करता है शिव का चरित्र व मन भी साफ, भोला यानी निस्वार्थ, विवेकी और पवित्र है। हर भक्त को भी शिव से इसी भद्रता का सबक लेना चाहिए।
बाघम्बर -   शिव बाघ की खाल पर बैठते और धारण भी करते हैं। कहीं वह हाथी की खाल भी धारण करने वाले बताए गए हैं। इनमें संदेश यही है कि शिव की तरह हिंसा भाव व हाथी की तरह शक्ति संपन्न होने पर भी अहंकार पर विजय पाएं। 


क्या है शिव के वाहन नंदी और त्रिनेत्र से जुड़ा संदेश?


नंदी या वृषभ वाहन- पुरुषार्थ यानी धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष का प्रतीक है, जो शिव कृपा से ही साधे जाने का प्रतीक है। 
त्रिनेत्र- भगवान शिव का तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक है, जिसका खुलना अज्ञान व अविवेक का नाश करने वाला माना जाता है। शिव भक्ति के जरिए यही ज्ञान भक्त की जीवन की राह आसान बनाता है। 
क्या है डमरू  और मुण्डमाला से जुड़ी गूढ़ बात


डमरू- डमरू का नाद यानी आवाज परब्रह्म स्वरूप माना गया है। शिव का तांडव नृत्य के दौरान इसके जरिए प्रकट ब्रह्म शक्ति जगत के सारे क्लेश व अज्ञानता का नाश करने वाली मानी गई है। इसलिए भी शिव पूजा में डमरू बजाने का महत्व है। 



मुण्डमाला- शिव के गले में नरमुण्डों की माला मृत्यु या काल का उनके वश में होने का प्रतीक है। 

हर हर महादेव 


दैनिक भास्कर Oct 07, 2014


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