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Wednesday 31 May 2023

महर्षि कणाद ने क्या परमाणु की जानकारी दी थी?

महर्षि कणाद एक प्राचीन भारतीय दार्शनिक थे जो लगभग 1800 वर्ष पहले विकसित हुए थे। वे कानाडसूत्र के रचयिता माने जाते हैं, जो भौतिकी और रसायन शास्त्र पर आधारित था।

कानाडसूत्र में, कणाद ने अणु के विषय में जानकारी दी थी। अणु को वे "परमाणु" नाम दिया करते थे। वे मानते थे कि परमाणु सृष्टि के छोटे से अधिकांश भाग हैं, जिनसे समस्त द्रव्य बनते हैं। कणाद ने अपने समय में परमाणु के बारे में अनेक विचार प्रस्तुत किए, जो बाद में आधुनिक भौतिकशास्त्र के विकास के लिए महत्वपूर्ण साबित हुए।

महर्षि कणाद भारतीय दर्शन और वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपने ग्रंथ "वैशेषिक सूत्र" में विभिन्न परमाणु सम्बन्धी सिद्धांतों को विस्तार से वर्णित किया था। इन सिद्धांतों में अणु की अविनाशित्व, अणु की अखण्डता और अणु के विभिन्न प्रकार शामिल थे।

महर्षि कणाद ने यह भी बताया था कि विश्व का समस्त मानव और अजीविका अणुओं से बना हुआ है और इन अणुओं के विभिन्न संरचनात्मक विशेषताओं के कारण वे अलग-अलग रूपों में पाए जाते हैं। वे इस तथ्य को भी बताते थे कि अणु की अनंत विभिन्नताओं के कारण ब्रह्मांड का निर्माण होता है और यह बहुत समय से चल रहा है।

इस प्रकार, महर्षि कणाद ने अपने समय से बहुत पहले ही परमाणु और वास्तविकता के संबंध में अध्ययन किया था। उनके द्वारा बताए गए सिद्धांत आज भी वैज्ञानिक दुनिया में महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
इस तरह, महर्षि कणाद ने परमाणु के बारे में प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों में से एक थे जो बाद में आधुनिक वैज्ञानिकों के विकास में बड़ा हाथ रखा।

मानव शरीर के सात रूप

 धार्मिक दर्शनों में, मानव शरीर के सात रूप होने का विचार पाया जाता है। इन सात रूपों के वर्णन में विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक विचारधाराएं होती हैं। यह सात रूप हैं:

1. शरीर: शरीर आपकी भौतिक वस्तु होती है जो आपकी पहचान के रूप में काम करती है। यह आपके साथ जन्म से लेकर मृत्यु तक होती है।

2. मन: मन आपकी चेतना, विचार और भावनाओं का एक संग्रह है। यह आपके अंतर्दृष्टि का भी एक भाग होता है।

3. आत्मा: आत्मा आपका आत्मतत्व या अस्तित्व होता है, जो शरीर और मन से अलग होता है। यह अद्वितीय होता है और अमर होता है।

4. जीव: जीव आपकी जीवन शक्ति होती है, जो आत्मा के साथ जुड़ी होती है। यह आपके शरीर में प्रवेश करता है और शरीर को जीवित रखता है।

5. बुद्धि : बुद्धि वह रूप है जो व्यक्ति को सोचने, निर्णय लेने और विचार करने की शक्ति प्रदान करता है।

6. चित्त : चित्त व्यक्ति की जागरूकता और उसके अनुभव को नियंत्रित करता है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने आसपास के वातावरण को संवेदनशीलता से अनुभव करता है और इससे उसका व्यवहार निर्धारित होता है। चित्त उसके अंतर्दृष्टि को नियंत्रित करता है और उसे समस्याओं के समाधान के लिए उत्तेजित करता है।

7.अहंकार: अहंकार व्यक्ति के अस्तित्व के साथ जुड़ा हुआ होता है। यह उसकी व्यक्तिगत पहचान को निर्धारित करता है और उसे उसके स्वभाव और गुणों के आधार पर समझाता है। अहंकार उसकी व्यवहार की सीमाएं निर्धारित करता है और उसे अन्य व्यक्तियों से अलग करता है।

मन्वंतर के अंत में आकाश में सप्तऋषि

 मन्वंतर वेदांतिक धर्म के अनुसार एक लंबे समय अवधि है जो कुल मिलाकर 4,320,000 सालों के बराबर होती है। मन्वंतर के अंत में, सप्तऋषियों का अस्तित्व नहीं होता है। अगले मन्वंतर में नए सप्तऋषि उनकी जगह नहीं लेंगे।

सप्तऋषि उन स्वर्गीय पुरुषों के नाम हैं जो अधिकतर मन्वंतर के शुरू में ब्रह्मा के उत्पत्ति के समय से उत्पन्न हुए थे।इन सप्तऋषियों का नाम वेदों में उल्लेखित है और उनके नाम हैं: मरीचि, वसिष्ठ, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु। उन्होंने धर्म का शिक्षा दिया था और लोगों को उनके जीवन के उदाहरण से प्रेरित किया था। उन्हें स्वर्ग में विशेष स्थान दिया जाता है और वे अभी भी अपने स्थानों पर बने रहते हैं।

नए मन्वंतर में नए सप्तऋषि होते हैं जो अपने जीवन के उदाहरण देकर मानव जाति को धर्म का उच्चतम ज्ञान देते हैं।

अगले मन्वंतर में, नए सप्तर्षि इनकी जगह लेंगे। वैदिक धर्म के अनुसार, समय चक्र का चक्रवर्ती पुरुष युग के अंत पर पृथ्वी पर अवतार लेता है और नये युग की शुरुआत करता है। इस तरह से, सप्तर्षि भी उस समय नए युग के साथ आते हैं।