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Friday 3 October 2014

जानिए अष्टांग योग के नियम

      

ध्यान से समाधि को प्राप्त करने के लिए योग के आठ अंगों से गुजरना जरुरी होता है। योग के आठ चरण अष्टांग योग कहलाते हैं। योग के आदिगुरु आचार्य पतंजलि ने स्पष्ट किया है कि बिना शरीर और मन की सफाई के समाधि की स्थिति तक पहुंचना संभव नहीं है। अगर ध्यान में गहरे उतरना चाहते हैं तो योग के इन आठ अंगों का पूरा पालन करना होगा। योग दर्शन में लिखा गया है -
    
यमनियमासनप्राणायमप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावंगानि।

अर्थात् यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि ये योग के आठ अंग हैं।

क्यों जरूरी है यम और नियम का पालन करना...

कई लोग समाधि लगाने की कोशिश करते हैं, लेकिन सफलता नहीं मिलती क्योंकि वे यम और नियम का पालन नहीं करते हैं। यम और नियम पालन करने से व्यक्ति झूठ बोलने, जोर जबरदस्ती करने, चोरी करने, कपट करने से दूर रहता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह को वश में कर लेने से उसका मन एकदम साफ व पवित्र बना रहता है। यम और नियम का पालन करे बिना ध्यान और समाधि तो दूर रही वह प्राणायाम तक ठीक से नहीं किया जा सकता है।

1- यम-  योगदर्शन के अनुसार 1- अहिंसा, 2- सत्य, 3- अस्तेय, 4- ब्रह्मचर्य, 5- अपरिग्रह इन पांचों का नाम यम है। यम का दूसरा नाम महाव्रत है।

अहिंसा- किसी दूसरे प्राणी को किसी भी प्रकार से शारीरिक नुकसान न पहुंचाना हिंसा है।

सत्य- मन में जैसा सोचा गया हो, किसी की हित की भावना में बिना चुभने वाले वाक्यों में वैसा ही कहना सत्य है।

अस्तेय- चोरी न करना।

ब्रह्मचर्य- विषय वासना से दूर रहना।

अपरिग्रह- शब्दों से, रूप से, रस से, गंध से, स्पर्श से प्रभावित न होना अपरिग्रह कहलाता है। अपरिग्रह मतलब जिसको ग्रहण न किया जाए।

2- नियम- 1- पवित्रता, 2- संतोष, 3- तप, 4- स्वाध्याय, 5- ईश्वर भक्ति ये पांचों नियम हैं।

पवित्रता- पवित्रता दो प्रकार की होती है।

बाहरी पवित्रता - शरीर की जल से शुद्धि बाहरी पवित्रता है।

आंतरिक पवित्रता- मन के दुर्गुणों को मिटा देना आंतरिक पवित्रता है।

संतोष-   सुख-दुख हर परिस्थिति में प्रसन्न बने रहने का नाम संतोष है।

स्वाध्याय- ग्रंथों का अध्ययन, अपनी पढ़ाई में लगे रहना का नाम स्वाध्याय है।

ईश्वर भक्ति- मन, वचन, कर्म से ईश्वर को मानना ईश्वर भक्ति है।
जानिए, योग के होते हैं आठ अंग, ध्यान और समाधि आते हैं सबसे आखिरी में

3- आसन- आसन मतलब बैठना। योग में आसन का अर्थ होगा सुखपूर्वक एक ही स्थिति में स्वयं को बनाए रखने वाली मुद्रा में बैठना।
आसन कई प्रकार के होते हैं। उनमें से सिद्धासन, पद्मासन प्रमुख आसन हैं, जिसमें बैठकर योग करना चाहिए।

4- प्राणायाम- प्राणायाम की क्रिया में सांसों को रोककर रखा जाता है, जिससे कि मन को स्थिर रखने की शक्ति प्राप्त होती है।

योगदर्शन में कहा गया है - ततः क्षीयते प्रकाशावरणम।

अर्थात प्राणायाम के सिद्ध हो जाने पर बुद्धि को ढकने वाले पाप का नाश हो जाता है।

5- प्रत्याहार- प्रत्याहार में इंद्रियां वश में हो जाती हैं। मन के वश में होते ही इंद्रियों पर कंट्रोल अपने आप बनने लगता है। मन का वश में रहना ही प्रत्याहार है।

6-  धारणा - मन के स्थिर हो जाने पर उसे किसी एक विषय पर स्थिर कर देना ही धारणा है। याने स्थूल या सूक्ष्म , भीतरी या बाहरी, किसी एक ही जगह मन को लगाना।

7-  ध्यान- धारणा में लगे हुए उस एक ही वस्तु में लगातार लगे रहना ही ध्यान है।

8-  समाधि- ध्यान ही समाधि हो जाता है, जब उस धारणा में लगाई हुई वस्तु की ओर ही मन रह जाता है व अपने धरती पर होने का अहसास ही नही रहता है।

Dainikbhaskar.com Oct 3, 2014, 04:17:00 PM IST


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