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Saturday 16 August 2014

जानिए भगवान् विष्णु के 10 नहीं 22 अवतारो के बारे में

आज तक हम सबही भगवन विष्णु के १० अवतारों के बारे में ही जानते पर ये बात बहुत ही कम लोग जानते होंगे की भगवान विष्णु के १० नहीं असंख्य अवतार हैं।यहाँ आपको उनमे से कुछ अवतारों का वर्णन किया जा रहा है। गरुड़ पुराण के अनुसार एक बार महात्मा सूतजी तीर्थ यात्रा पर थे तभी वे नेमिषारान्य  आये तब वहाँ के वासी शौनकादि  मुनियो के पूछने पर श्री सूतजी ने उन्हें भगवन नारायण के अवतारों का वर्णन किया। जो इस प्रकार है।

१- भगवान् नारायण ने सबसे पहले कौमार -सर्ग में (सनत्कुमारादि के रूप मे) अवतार धारण करके कठोर तथा अखंड ब्रह्मचर्यव्रत का पालन किय।
२- दुसरे अवतार में श्री हरि  ने जगत की स्थिति के लिए ( हिरण्याक्ष  के द्वारा ) पाताल  मे ले जायी गई पृथ्वी का उद्धार करने के लिए 'वराह' - शरीर को धारण किया । ३- तीसरे अवतार में ऋषि - सर्ग में देवर्षि ( नारद ) के रूप में अवतरित होकर भगवान् ने ' सात्वत - तंत्र ' का विस्तार किया।
४- चौथे ' नरनारायण ' अवतार में धर्म की रक्षा के लिए कठोर तपस्या की और वे देवताओं तथा असुरों द्वारा पूजित हुए ।
५- पांचवे अवतार में श्रीहरि  ' कपिल ' नाम से अवतरित  हुए, जो सिद्धों में सर्वश्रेष्ठ हैं और जिन्होंने काल के प्रभाव से लुप्त हो चुके सांख्यशास्त्र  कि शिक्षा दी ।
६- छठे अवतार में महर्षि अत्री की पत्नि अनसूया के गर्भ से ' दत्त्रादेय  ' के रूप में अवतीर्ण होकर राजा अलर्क और प्रहलाद आदि को आन्विक्षी ( ब्रह्म ) विद्या का उपदेश दिया ।
७- सातवे अवतार में भगवान  नारायण ने इन्द्रादि देवगड़ के साथ यज्ञ का अनुष्ठान किया और इसी स्वायम्भुव  मन्वन्तर में वे आकूति के गर्भ से रूचि प्रजापति के पुत्ररूप में ' यज्ञदेव ' के नाम से अवतीर्ण हुए ।
८- आठवे अवतार भगवान  विष्णु नाभि एवं मेरुदेवी के पुत्ररूप में ' ऋषभदेव ' के नाम से प्रादुर्भूत हुए । इस अवतार मे  इन्होने नारीओ के आदर्श मार्ग का निदर्शन किया ( गृहस्थाश्रम मार्ग का ) जो सभी आश्रमों द्वारा नमस्कृत है ।
९- नवें  अव्तर में श्री हरी ने ऋषियों की प्रार्थना से ' पृथु ) का रूप धारण किया और गौरूपा  पृथ्वी से दुग्ध के रूप में महा औषधियों का दोहन किया । जिससे लोगों के जीवन की रक्षा हुई ।
१०- दसवे अवतार में श्री हरी ने ' मतस्य ' रूप धारण करके चाक्षुप  मन्वन्तर के बाद आने वाली प्रलय में पृथ्वी रुपी नौका में बैठाकर  वैवस्वत मनु को सुरक्षा प्रदान की ।
११ - ग्यारहवें अवतार में श्री हरी ने समुन्द्र-मंथन के समय 'कुर्म' रूप ग्रहण करके मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर  धरन किया ।
१२- बारहवें में 'धन्वन्तरि' बने
१३- तेरहवें अवतार में ' मोहिनी ' के स्त्री रूप में दैत्यों को मोहित करते हुए देवताओं को अमृतपान कराया ।
१४- चोदहवें  अवतार में भगवान् विष्णु ने ' नरसिंह ' रूप में हिरन्यकश्यप  क वध किया ।
१५- पन्द्रहवें अवतार में श्री हरी भगवान् ने ' वामन ' रूप धारण करके राजा बलि के यज्ञ में गए और देवों  को तीनो लोक प्रदान करने की इच्छा से उससे तीन  पग भूमि की याचना की।
१६- सोलहवें अवतार में श्री हरी को 'परशुराम' नामक अवतार में ब्राह्मण द्रोही क्षत्रियों के अत्याचारो को देखकर उन्हें क्रोध आ गया और उसी भावावेश में आकर उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियों से रहित कर  दिया ।
१७- सत्रहवें अवतार में पराशर द्वारा सत्यवती से 'व्यास नाम से ) अवतरित हुए और मनुष्यों की अल्पज्ञता को जानकर वेदों को अनेक शाखाओं में विभक्त किया ।
१८- अट्ठारवां अवतार अवतार श्रीराम थे ।
१९- २०- उन्नीसवें तथा बीसवें  अवतार में भगवान् विष्णु ने  ' कृष्ण ' एवम ' बलराम ' का रूप धरम करके पृथ्वी  के भार का हरण किया ।
२१- इक्कीसवें अवतार में भगवान् कलयुग की संधि के अंत में देवद्रोहिओं को मोहित करने के लिए कीकट देश में जिनपुत्र  ' बुद्ध ' के नाम से अवतीर्ण हुए।
२२- और सबसे आखिरी बाइसवें अवतार में भगवान् विष्णु कलयुग की आठवीं संध्या में अधिकाँश राजवर्ग  के समाप्त होने पर विष्णुयशा नामक ब्राह्मण के घर में ' कल्कि ' नाम से अवतार ग्रहण करेंगे व कलयुग का अंत करेंगे ।
जय श्री कृष्णा








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