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Friday 8 August 2014

यज्ञ /हवन करने के लाभ



वैज्ञानिक रूप से लाभ :-

यज्ञ के पीछे एक सांइटिफिक कारण होता है क्योँकि यज्ञ मेँ सब जड़ी बूटियाँ ही डाली जाती हैँ। आम की लकड़ी, देशी घी, तिल, जौँ, शहद, कपूर, अगर तगर, गुग्गुल, लौँग, अक्षत, नारियल शक्कर और अन्य निर्धारित आहूतियाँ भी बनस्पतियाँ ही होती हैँ।
नवग्रह के लिए आक, पलाश, खैर,शमी,आपामार्ग, पीपल, गूलर, कुश, दूर्वा आदि सब आयुर्वेद मेँ प्रतिष्ठित आषधियाँ हैँ। यज्ञ करने पर मंत्राचार के द्वारा न सिर्फ ये और अधिक शक्तिशाली हो जाती हैँ बल्कि मंत्राचार और इन जड़ीबूटियोँ के धुएँ से यज्ञकर्ता/ यजमान / रोगी की आंतरिक बाह्य और मानसिक शुद्धि भी होती है। साथ ही मानसिक और शारीरिक बल तथा सकारात्मक ऊर्जा भी मिलती है।
अधार्मिक, नास्तिक, तर्कवादी और पश्चिमी सभ्यता के चाटुकार आधुनिकतावादी और अतिवैज्ञानिक लोग यज्ञ के लाभ को नकारते हैँ परन्तु यज्ञ के मूल को नहीँ समझते ।
हमारे पूर्वजोँ ने इसे यूँ ही महत्व नहीँ दिया, यज्ञ मेँ जो आहूतियाँ देते है, तब यज्ञ की अग्नि मेँ या इतने हाई टेम्परेचर मेँ Organic material जल जाता है और inorgnic residue शेष रह जाता है जो दो प्रकार का होता है। एक ओर कई complex chemical compounds टूट कर सिम्पल या सरल रूप मेँ आ जाते है वहीँ कुछ सरल और जटिल react कर और अधिक complex compound बनाते हैँ। ये सब यज्ञ के धुएँ के साथ शरीर मेँ श्वास और त्वचा से प्रवेश करते हैँ और उसे स्वस्थ बनाते हैँ।
कई बार आपने सुना होगा कि किसी बाबा ने भभूत खिलाकर रोगी को ठीक कर दिया या फलाँ जगह मँदिर आश्रम आदि की भभूत से चमत्कार हुऐ, रोगी ठीक हुए यह सत्य होता है और उसका वैज्ञानिक कारण मैँ आपको ऊपर बता चुका हूँ ।
इसी प्रकार यज्ञ की शेष भभूत सिर्फ चुटकी भर माथे पर लगाने और खाने पर बेहद लाभ देती है क्योँकि micronised/ nano particles के रूप मेँ होती है और शरीर के द्वारा बहुत आसानी से अवशोषित(absorb) कर ली जाती है। जिस हवन मेँ जौँ एवं तिल मुख्य घटक यानि आहूति सामग्री के रूप मेँ उपयोग किये गये होँ बहाँ से थोड़ी सी भभूत प्रसाद स्वरूप ले लेँ और बुखार, खाँसी, पेट दर्द, कमजोरी तथा मूत्र विकार आदि मेँ एक चुटकी सुबह शाम पानी से फाँक ले तो दो तीन दिन मेँ ही आराम मिल जाता है। साथ ही यज्ञादि से वर्षा भी अच्छी होती है जिससे अन्न जल की कोई कमी नहीँ होती ये भी प्रमाणिक है। इसलिए आप भी यज्ञ करवाएं या किसी हवन व यज्ञ में हिस्सा लें I
धार्मिक रूप में लाभ :-
जब सारे जप-तप निष्फल हो जाते हैं, तब यज्ञ ही सब प्रकार से रक्षा करता है। सृष्टि के आदिकाल से प्रचलित यज्ञ सबसे पुरानी पूजा पद्धति है। आज आवश्यकता है यज्ञ को समझने की। वेदों में अग्नि परमेश्वर के रूप में वंदनीय है। यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म माना गया है। समस्त भुवन का नाभि केंद्र यज्ञ ही है। यज्ञ की किरणों के माध्यम से संपूर्ण वातावरण पवित्र व देवगम बनता है। यज्ञ भगवान विष्णु का ही अपना स्वरूप है। वेदों का संदेश है कि शाश्वत सुख और समृद्धि की कामना करने वाले मनुष्य यज्ञ को अपना नित्य कर्तव्य अवश्य समझें। भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवत गीता में अर्जुन से कहते हैं, हे अर्जुन! जो यज्ञ नहीं करते हैं, उनको परलोक तो दूर यह लोक भी प्राप्त नहीं होता है। जिन्हें स्वर्ग की कामना हो, जिन्हें जीवन में आगे बढ़ने की आकांक्षा हो उन्हें यज्ञ अवश्य करना चाहिए। यज्ञ कुंड से अग्नि की उठती हुई लपटें जीवन में ऊंचाई की तरह उठने की प्रेरणा देती हैं। यज्ञ में मुख्यत: अग्नि देव की पूजा का महत्व होता है।
यज्ञ करने वाले बड़भागी होते हैं। इस लोक में उनका दु:ख-दारिद्रय तो मिटता ही है, साथ ही परलोक में भी सद्गति की प्राप्ति होती है। यज्ञ में जलने वाली समिधा समस्त वातावरण को प्रदूषण मुक्त करती है। यज्ञवेदी पर गूंजने वाली वैदिक ऋचाओं का तो कहना ही क्या, अद्भुत प्रभाव डालती हैं। यज्ञ में बोले जाने वाले मंत्र व्यक्ति की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। यज्ञ से ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति होती है। यज्ञ से शांति, सुख की प्राप्ति होती है। जो याज्ञिक हैं, वे हर बाधा को पार कर जाते हैं। यज्ञ में बोले जाने वाले हर मंत्र में शरीर को झंकृत करने की अपार शक्ति होती है। परमपिता परमेश्वर से नाता जोड़ने का अनुपम माध्यम है यज्ञ। मनुस्मृति में उल्लेख है कि यज्ञ के माध्यम से मनुष्य विद्वान बनता है, लेकिन मनुष्य को स्वयं को कुछ विशेष आहार-विहार एवं गुण-कर्म में ढालना पड़ता है। ताकि इस दौरान उसका चिंतन मनन श्रेष्ठ बना रहे। यज्ञ लौकिक संपदा के साथ-साथ आध्यात्मिक संपदा की प्राप्ति का द्वार है।
[आचार्य अनिल वत्स

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