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Sunday 24 August 2014

दान धर्म व् उसका महत्व


           

गरुड़ पुराण में ब्रह्माजी ने दानधर्म के विषय में बताया है जो इस प्रकार है:-

सत्पात्र में श्रद्धा पूर्वक किया गया अर्थ ( भोग्यवस्तु) का प्रतिपादन दान कहलाता है| दान हम सबको इस लोक में भोग और परलोक में मोक्ष प्रदान करता है| हमें सही प्रकार व् न्यायपूर्वक ही अर्थ (भोग्यवस्तु) का उपार्जन करना चाहिए| अपनी मेहनत व् सच्चाई से अर्जित अर्थ का दान ही सफल होता है| सद्व्रत्ति  से प्राप्त धन जब सुयोग्य पात्रो. को दिया जाये वही दान कहलाता है| यह दान चार प्रकार का होता है:- नित्य, नेमित्तिक, काम्य, विमल |
फल की इच्छा न रखकर और उपकार की भावना से रहित होकर योग्य ब्राह्मण को प्रतिदिन जो दान दिया जाता है वह नित्य दान कहलाता है| अपने पापों की शांति के लिए विद्वान् ब्राह्मणों के हाथों पर जो धन दिया जाता है,सत्पुरुषों से दिया गया ऐसा दान नेमित्तिक दान कहलाता हैI संतान,विजय,ऐश्वर्य और स्वर्ग की प्राप्ति की इच्छा से किया गया दान काम्य दान कहलाता हैI ईश्वर की प्रसन्नता के लिए ब्रह्मवित्-जनों को अच्छी भावना से दिया गया दान विमल दान है I यह दान कल्याणकारी होता हैI
ईख की हरी भरी फसल से युक्त या गेहूं की फसल से संपन्न भूमि का दान वेदविद ब्राह्मणों देने से पुनर्जन्म नहीं होताI भूमिदान को श्रेष्ठ दान कहा गया है I
ब्राह्मण को विद्या प्रदान करने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है | जो व्यक्ति प्रतिदिन ब्रह्मचारी को श्रद्धापूर्वक विद्या प्रदान करता है वह सभी पापों से विमुक्त होकर ब्रह्मलोक के परमपद को प्राप्त करता है|
वैशाख मास की पूर्णिमा को उपवास रखकर पांच या सात ब्राह्मणों की विधिवत पूजा करके उन्हें मधु,तिल, और घृत से संतुष्ट करके उनसे ( प्रीयतां धर्मराजेती यथा मनसि वर्तते || ) (अर्थात हे धर्मराज I मेरे मन में जैसा भाव है,उसी के अनुकूल आप प्रसन्न हों |) ये मन्त्र कहलवाता है या स्वयं कहता है उसके जन्मभर किये गए सारे पाप समाप्त हो जाते हैं|
स्वर्ण, मधु एवं घी के साथ तिलों को कृष्ण-मृगचर्म में रखकर ब्राह्मण को देने सेवो व्यक्ति सभी प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है |
वैशाखमास में घृत ,अन्न और जल का दान करने से विशेष फल प्राप्त होता है| अतः उस मॉस में धर्मराज को उद्देश्य करके घृत ,अन्न और जल का दान ब्राह्मणों को करने से सभी प्रकार के भय से मिक्ति हो जाती है| द्वादशी तिथि में स्वयं उपवास रखकर भगवान् विष्णु की पूजा करनी चाहिए| ऐसा कने से निश्चित ही मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं|
संतान प्राप्ति के लिए इन्द्रदेव का पूजन करना चाहिए| ब्रह्व्र्चर्स की कामना करने वाला व्यक्ति ब्रह्मरूप में ब्राह्मणों को स्वीकार करके उनकी पूजा करे| आरोग्य की इच्छा वाला मनुष्य सूर्य की तथा धन चाहनेवाले व्यक्ति अग्नि की पूजा करे| कार्यों में सिद्धि प्राप्त करने के लिए सगरी गणेश जी का पूजन करे| भोग की कामना होने पर चन्द्रमा की तथा बल प्राप्ति के लिए वायु की पूजा करें| तथा इस संसार से मुक्त होने के लिए प्रयत्नपूर्वक भगवान् श्रीहरी की अराधना करनी चाहिए|
जलदान से तृप्ति , अन्नदान से अक्षय सुख, तिलदान से अभीष्ट संतान, दीपदान से उत्तम नेत्र, भूमिदान से समस्त अभिलाषित पदार्थ, सुवर्णदान से दीर्घायु, गृहदान से उत्तम भवन तथा रजत दान से उत्तम रूप प्राप्त होता है| यान तथा शय्या का दान करने पर भार्या, भयभीत को अभय प्रदान करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है| धन्य-दान से अविनाशी सुख और वेदके (वेदाध्यापन) दान से ब्रह्का सानिध्य लाभ होता है| वेदविद ब्राह्मण को ज्ञानोपदेश करने से स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है| गाय को घास देने से सभी पापों से मुक्ति हो जाती है| ईंधन के लिए काष्ठ आदि का दान करने से व्यक्ति प्रदीप्त अग्नि के सामान तेजस्वी हो जाता है| रोगियों के रोगशान्ति के लिए औषधि, तेल आदि पदार्थ एवं भोजन देनेवाला मनुष्य रोगरहित होकर सुखी और दीर्घायु हो जाता है तथा जो व्यक्ति परलोक में सम्पूर्ण सुख की इच्छा रखता है उसे अपनी सबसे प्रिय वस्तु  क दान किसी गुणवान ब्राह्मण को करना चाहिए ।
दान धर्म से श्रेष्ठ धर्म इस संसार में हम सब प्राणियों के लिये कोई दूसरा नहीं है। तथा हमें किसी भी व्यक्ति को गौ , ब्राह्मण , अग्नि , तथा देवों  को दिए वाले दान से नहीं रोकना चहिये।
तो आज से ही अपने तथा दूसरों की भलाई के लिए दान देना शुरू करे।


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