Translate

Thursday 7 August 2014

स्त्री चरित्र का वैज्ञानिक --राजा भर्तुहरि


बात है आज से लगभग 2000 साल पहले की ,जब मध्य भारत के उज्जैन नामक नगर में एक महाप्रतापी राजा राज करते थे,नाम था महाराज भर्तुहरि...
महाराज भर्तुहरि के ही छोटे भाई थे राजा विक्रमादित्य,जिन्होंने विक्रम संवत की स्थापना की थी....
महाराज भर्तुहरि एक निति कुशल राजा थे। महाराज की तीन रानिया थी। जिनमे से एक का नाम था पिंगला। महाराज पिंगला से बहुत प्रेम करते थे लेकिन पिंगला एक चरित्रहीन स्त्री थी।।
उसी राज्य में एक ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण देवी का उपासक था। एक दिन देवी जगदम्बा प्रगट हुयी और ब्राह्मण को एक फल दिया और कहा की जो इस फल को खाएगा वो अमर हो जाएगा।।
ब्राह्मण ने सोचा क्यों न ये फल महाराज को दे दू,क्युकी महाराज अमर हो जाएगे तो राज्य का भला होगा। ये सोचकर ब्राह्मण ने राजा भर्तुहरि को फल दे दिया और पूरी कहानी सूना दी..राजा ने ब्राह्मण को उपहार देकर विदा किया और राजा ने अपनी रानी पिंगला को फल देते हुए कहा--मेरी प्राण प्यारी अगर तुम अमर रहोगी तो मुझे ख़ुशी होगी....
रानी पिंगला चरित्रहीन थी वो एक दरोगा से प्रेम करती थी जो राजा की सेना में सैनिक था,रानी ने फल दरोगा को दे दिया....दरोगा एक वैश्या के प्रति आसक्त था,इसीलिए उसने वो फल वैश्या को दे दिया....वैश्या राजा भर्तुहरि का सम्मान करती थी ,वैश्या ने सोचा कि हमारे महाराज कितने महान है,उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी है ....ये सोचते हुए वैश्या ने वो फल महाराज भर्तुहरि को दे दिया और कहा की महाराज आप इस फल को खा लिजिये क्युकी इसको खाने से आप अमर हो जाएँगे....
फल देखकर राजा आश्चर्य चकित थे....वो सोच में पड़ गए की जो फल मैंने अपनी पत्नी को दिया वो इस वैश्या के पास कैसे पहुंचा???
जांच के बाद पूरी कहानी सामने आगई। महराज को मालूम पड़ गया की जिसको मैंने दिल से चाहा वो तो बेवफा निकली।।
तब महाराज ने अपनी पत्नी यानि रानी पिंगला को मृत्युदंड दे दिया और अपने भाई विक्रमादित्य को राजा घोषित कर दिया,क्युकी राजा विक्रम पर भी उसकी भाभी यानि रानी पिंगला ने बलात्कार का झूठा आरोप लगाया था...इसीलिए महाराज भर्तुहरि ने अपने भाई से माफ़ी मांगते हुए उसको राजा बना दिया और खुद ने संन्यास ले लिया।।
संन्यास लेने के बाद भार्तुहरी में दो ग्रंथो की रचना की
1)श्रृंगार शतक--इसमें स्त्री के गुण और दोष दोनों का वर्णन है
2)निति शतक----इसमें राजनीति और दुष्ट स्त्रियों से बचने के उपायो का वर्णन है...
ये दोनों ही ग्रन्थ में एक चीज जो आम है वो ये की दोनों ही ग्रंथो में स्त्री जाति के गुण दोष बताये गए है और उस से सावधान रहने की सीख दी गयी है। ये दोनों ही ग्रन्थ संस्कृत भाषा में है। और आज भी प्रासंगिक है।।
इन ग्रंथो में एक बात जो बहुत ठोक बजाकर कही गयी है वो ये कि
""स्त्री का विशवास मुर्ख पुरुष ही करते है,समझदार नहीं""

आज भी उज्जैन में भर्तुहरि महाराज की गुफा है जहा उन्होंने तपश्या की थी। और उनके भाई राजा विक्रमादित्य ने बैताल पर विजय प्राप्त की थी। विक्रम--बैताल की कहानी आज भी हमारे समाज में प्रचलित है।।

8 comments:

  1. Super duper🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete
  2. क्या यह सत्य पर आधारित है, या काल्पनिक , कारण कि भजनों में योगी बनने का कारण हिरण का शिकार करना, और गुरु गोरखनाथ जी के द्वारा उसे जिंदा करना बताया है। धन्यवाद

    ReplyDelete
  3. जी तीन शतक लिखें थे तीसरा "वैराग्य शतक" है

    ReplyDelete
  4. महाराजा भर्तृहरि ने अपना अंतिम समय अलवर (राजस्थान) के पास सन्यासी के रुप में निकाला और यही पर देह त्यागी थी । आजकल यह गांव भर्तृहरि के नाम से प्रसिद्ध है और दर्शनीय स्थल है ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. वैज्ञानिक Love था न की राजा।

      Delete
  5. Yah Jo thok bajakar Kahane Ki Baat Kahi gai hai Ki Stri ka Vishwas murkh Purush hi Karte Hain samajhdar Nahin yah bahut hi hansne yogya baat hai Kyunki Purush ya stri ka Janm Uske Mata Pita arthat Purush ya Stri me Sanskar Uske Mata aur Pita se aate Hain स्त्री और पुरूष में कोई भी अविश्वसनीय हो सकता है।

    ReplyDelete
  6. sant rampal ji maharaj ke satsang suno nahi to maroge bhai jai bandichod ki lod koni aur ki



    sat sahib

    ReplyDelete