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Friday 8 August 2014

जानें हनुमान जी की अष्ट सिद्धियाँ


योगी साधक से लेकर आम आदमी सभी सिद्धियो को पाने के लिए कठिन तप-योग आदि करते है... योगी योग साधते हैं, तपस्वी कठिन तप करते हैं... कितने लोग देवी-देवताओं की उपासना में जीवन व्यतीत कर देते हैं, लेकिन इनमें से विरले ही होते है जिन्हें सिद्धि प्राप्त होती है... लेकिन इन सबो से इतर किसी व्यक्ति पर ईश्वर की दया-दृष्टि पड़ जाये तो उसे सिद्धियां-निधियां सहज ही प्राप्त हो जाती हैं... पुराणो के अनुसार जब जगत-जननी सीता लंका की अशोक-वाटिका में कैद थीं... और उनकी खोज करते हनुमान राम का संदेश लेकर उनके सामने प्रकट हो गए... हनुमान ने सीता की खोज कर ली... वे उनके उपकार को कैसे भूल सकती थीं? उन्होंने हनुमान को वरदान देकर उन्हें कृत-कृत्य कर दिया... इसका वर्णन गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में किया है -
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता। असवर दीन्ह जानकी माता।।
माता जानकी के वरदान के अनुसार पवनपुत्र को ये सिद्धियां-निधियां प्राप्त ही नहीं हुईं, बल्कि वे इन्हें दूसरों को देने में भी समर्थ हो गए... ये सिद्धियां क्या हैं? मार्कंडेय पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में सिद्धियों का उल्लेख आया है-
अणिमा लघिमा गरिमा प्राप्ति: प्राकाम्यंमहिमा तथा। ईशित्वं च वशित्वंच सर्वकामावशायिता:।।
इस प्रकार आठ सिद्धियां हैं-अणिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य,महिमा, ईशित्व और वशित्व... जानते है ये क्या है इनका क्या उपयोग है -
अणिमा - यह वह सिद्धि है, जिससे युक्त व्यक्ति गुप्त होकर कहीं भी पहुंच सकता है... वह सूक्ष्म रूपधारी होने के कारण दूसरों के लिए अदृश्य हो जाता है...
लघिमा - इससे व्यक्ति अपने शरीर को काफी छोटा कर सकता है... यह सिद्धि हनुमान को पहले से ही प्राप्त थी... सीता की खोज में लंका-प्रवेश करते हुए उन्होंने अपने विशालकाय शरीर को मच्छर की तरह छोटा कर लिया था...
गरिमा - इस सिद्धि से मनुष्य अपने शरीर को जितना चाहे, उतना भारी बना सकता है... इस संदर्भ में गणेश पुराण की एक कथा है... गणेश जी ने किसी ऋषि को एक विशालकाय चूहे से परेशान देखा... उन्होंने ऋषि को इस कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए चूहे से युद्ध करना शुरू किया... गणपति की वीरता से प्रसन्न होकर दीर्घकाय मूषक ने गणेश जी को वरदान मांगने को कहा... उन्होंने कहा, तुम मेरा वाहन बन जाओ... वचन के अनुसार वह गणेश का वाहन बन गया, लेकिन गणेशजीने गरिमा सिद्धि से अपने शरीर को इतना भारी कर लिया कि दीर्घकाय मूषक का दम निकलने लगा... चूहे की प्रार्थना पर गणेशजीने उसे इस शर्त पर छोड दिया कि वह पुन:ऋषि को तंग नहीं करेगा...
प्राप्ति - इस सिद्धि को प्राप्त व्यक्ति जिस वस्तु की भी अभिलाषा करता है, वह अप्राप्य होने पर भी उसे प्राप्त हो जाती है... उदाहरण के लिए, यदि कोई ऐसा सिद्ध व्यक्ति मरुभूमि से गुजर रहा हो और प्यास से ग्रस्त हो जाए, तो इच्छा करने मात्र से उसे गंगाजल भी प्राप्त हो जाता है...
प्राकाम्य - यहसिद्धि उपरोक्त सिद्धि से मिलती-जुलती है... इससे संपन्न व्यक्ति जो चाहता है, वही हो जाता है... इस संबंध में एक ऐतिहासिक उदाहरण है... वामाक्षेपा भगवती तारा के महान उपासक एवं विश्वविख्यात तांत्रिक थे... एक बार उनके पिता के श्राद्ध के समय जब सैकडों लोग भोजन पर बैठे थे, तो अचानक आसमान जल भरे बादलों से घिर आया... कहते हैं कि वामाक्षेपा ने हाथ ऊपर उठाकर बादलों को बरसने से रोक दिया...
महिमा - यह लघिमा के ठीक विपरीत है... इस सिद्धि से संपन्न व्यक्ति अपने शरीर को विशाल कर सकता है... हनुमान ने समुद्र पार करने लिए अपने शरीर को अत्यंत दीर्घ बना लिया था... महाभारत युद्ध के समय श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को अपना विराट स्वरूप दिखलाया था...
ईशित्व - यहशब्द ईश से बना है... इस सिद्धि को प्राप्त व्यक्ति प्रभुत्व और अधिकार प्राप्त करने में सक्षम होता है... वह चाहे तो मनुष्यों के समूहों और छोटे-से-छोटे राज्यों से लेकर साम्राज्यों का भी अपनी इच्छा मात्र से अधिकारी बन सकता है... भगवान वामन ने तीन पगों से ही पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल तक को माप कर अपने अधिकार में कर लिया था...
वशित्व - यहसिद्धि किसी को भी वश में करने के लिए ख्यात है... मान्यता है कि इस सिद्धि से संपन्न व्यक्ति किसी भी प्राणी को अपने वश में कर सकता है...
अब जानते है उनकी  नौ निधियां के बारे में ---
निधि का अर्थ सामान्यत:धन या ऐश्वर्य होता है... प्रमुख वस्तुएं, जो अति दुर्लभ होती हैं, निधियां कहलाती हैं... इनका उल्लेख ब्रह्मांड पुराण एवं वायु पुराण में मिलता है... इनमें से नौ प्रमुख निधियों को चुनें, तो वे होंगी ---
रत्न-किरीट [अर्थात् रत्न का मुकुट]
केयूर [बाहों में पहनने वाला सोने का आभूषण]
नूपुर
चक्र
रथ
मणि
भार्या [पत्नी]
गज
पद्म या महापद्म
कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष माने जाते हैं... इनके नौ रत्न नौ निधियों में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं- पद्म, महापद्म,शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्व...

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